मेरे मित्र हैं, सुबह उठ कर दातुन या मिसवाक नहीं करते, जो हमारे जैसे छोटे क़स्बे में आज भी आसानी से मिल जाती है, कोलगेट के ब्रश और टूथ्पेस्ट इस्तेमाल करते हैं, बाथरूम में हर फ़िटिंग हिंदुस्तान पैरीवेऑर का है, मुँह भी उसी के बेसिन में धोते हैं, टट्टी भी उसी के कमोड में बैठ के करते हैं! फिर नहाते हैं डव के साबुन से…बाहर निकल कर बॉम्बे डाइइंग के तौलिए से शरीर पोछते हैं और रेमंड का चकाचक शर्ट और कलर प्लस का पैंट पहन कर दफ़्तर जाने की तय्यारी करते हैं। अच्छा कुर्ता, पैजामा और बंडी रखे हैं, wardrobe में, सब Fab India का। सरकारी खादी ग्रामोद्योग की दुकान बग़ल में है, पर वहाँ कभी तसरीफ ले जाने की ज़हमत नहीं की…
घर का सारा फ़र्निचर डूरीयन का बनवा रखा है और स्कूटर भी डिज़ाइनर वेस्पा। साथ में गाड़ी भी है सुज़ूकी की! मोबाइल खूब इस्तेमाल करते हैं, सैमसंग का, और अब वही इस्तेमाल करते हैं, BSNL की landline कब की कटवा डाली, की अब कोई क्या करे landline का, जब मोबाइल है ही। मोबाइल में कनेक्शन जीयो का डलवा रखा है और जम के इंटर्नेट पेलते हैं, addiction की हद तक, सोशल मीडिया में खूब ऐक्टिव हैं…
पिछले साल चाइना वाइरस के आने पे पहले माँ बाबूजी को इंडिगो हवाई जहाज़ से जम्मू ले गए और फिर वैष्णोदेवी…माँ बाबूजी ज़िंदगी में पहली बार बैठे थे हवाई जहाज़ में! जब सिर्फ़ air India उड़ता था, टिकट इतना महंगा था की मेरे मित्र तक सोच नहीं सकते थे उड़ना, तो बाबू जी कहाँ से सोचते। ऊपर से हवाई अड्डा तो इतना साफ़ सुथरा की लगता था विदेश में हों, बाबू जी excited हो के बोल रहे थे…मित्र मेरे सोच रहे हैं, अगली छुट्टी में Singapore हो आएँ, अब टिकट सस्ता कर रहा है इंडिगो।
और यही मित्र आज ज्ञान भी दे रहे थे बजट सुनके की सब बेच देगी सरकार। जब मैंने उनसे पूछा की दातुन क्यों नहीं करते, सरकारी NTC मिल का कपड़ा क्यों नहीं ख़रीदते, BSNL की landline काहे कटवा दी, जब जीयो नहीं था, कितना इंटर्नेट पेलते थे? (उन किसानों की तरह जो परसों तक जीयो का इंटर्नेट टावर तोड़ रहे थे, और कल इंटर्नेट बहाली की बात कर रहे थे), सरकारी scooter India का स्कूटर क्यों नहीं ख़रीदे, (जैसे किसान सरकारी कम्पनी HMT का ट्रैक्टर छोड़ कर प्राइवट कम्पनी का ट्रैक्टर ख़रीद कर उसको बंद करवा दिए – क्यों नहीं ख़रीदे HMT का ट्रैक्टर ये कॉर्प्रॉट विरोधी?), ख़रीदते तो बंद नहीं होती कम्पनी। क्यों उड़ते हैं इंडिगो से, सरकारी air India छोड़ कर? मित्र जी नाराज़ हो गए।
Air India नहीं बेचें? 30,000 करोड़ रुपया झोंक चुके हैं उसमें, ज़बरदस्ती ज़िंदा रखने के लिए इसको…और ये एक कम्पनी है। कितने स्कूल खुल सकते थे इससे, कितने बच्चों को खाना दिया जा सकता था, कितने सैनिकों को अच्छा समान। पैसा पेड़ पे नहीं उगता जनाब, वो गरीब जो बीड़ी और माचिस ख़रीदता है, वो भी टैक्स देता है उनपर और उसको आप झोंक देते हें ऐसे खर्चे में जो प्राइवट कहीं बेहतरीन तरीक़े से चलाती ही नहीं, नए रोज़गार भी देती हैं। पता करिए पिछले दस साल में जीयो ने कितने लोगों को रोज़गार दिया है!
दिमाग़ तख़ा पे रख छोड़ा है इन लोगों ने। और इतना दोगलापन की खुद सरकारी कुछ इस्तेमाल करते नहीं, लेकिन सरकार ग़रीबों के टैक्स का पैसा बर्बाद करती रहे। क़ानून तो ये होना चाहिए की जो भी leftism बतियाता है वो क़ानूनन सरकारी छोड़ के कुछ और इस्तेमाल ही नहीं कर पाए। strategic sector समझ में आता है, अब सरकार ब्रेड बनाए, होटेल चलाए, वो भी टैक्स पेअर का पैसा झोंक कर…क्यों भई?
PS: अभी पूरी दुनिया में भारत का डंका जिस वैक्सीन के बदौलत बज रहा है, वो वैक्सीन जो रेकर्ड समय में बनायी गयी, जो दुनिया की सबसे सस्ती वैक्सीन है, जो करोड़ों भारतीय लोगों की ही नहीं, विश्व भर के लोगों की जान बचाएगी, वो सरकार बना रही है?